मुहम्मद बिन तुगलक |
दिल्ली सल्तनत के एक राजा, तुगलक (या तुग़लक़) ने 1325 से 1351 ईस्वी तक शासन किया| वे उन तुर्की सम्राटों और राजाओं की श्रृंखला में से एक थे जिन्होंने उत्तरी भारत पर शासन किया| एक योद्धा और दार्शनिक सम्राट, तुगलक अपने साम्राज्य के लिए एक विस्तारवादी नीति के पक्षधर थे, उन्हें दक्कन तथा गुजरात के विजय अभियानों के लिए जाना जाता है| 1351 ईस्वी के मार्च महीने में उनका निधन हो गया; यह उनका दुर्भाग्य ही था कि उन्होंने अपनी आँखों से अपने साम्राज्य को लड़खड़ाते और उजड़ते हुए देखा| उनके बाद उनके पुत्र, फ़िरोज़ शाह तुग़लक़, ने गद्दी संभाली। |
जौना खान, उलूग खान और राजकुमार फख्र मलिक के रूप में भी जाने जानेवाले तुगलक एक सुविख्यात विद्वान और सुलेखक थे| उन्होंने चिकित्सा, खगोल विज्ञान, गणित, दर्शनशास्त्र, तर्कशास्त्र, भौतिक विज्ञान और द्वंद्ववाद का अध्ययन किया था| वे नए प्रयोग करने से कभी हिचकिचाए नहीं और उन्होंने टोकन प्रणाली पर आधारित एक नयी सिक्का प्रणाली की शुरुआत की| तांबे और पीतल के टोकन बनाए गए थे और सल्तनत के खजाने में उनका मूल्य सोने और चांदी द्वारा समर्थित था| नागरिकों को टोकन के बदले अपने सोने और चांदी के सिक्कों का आदान-प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित किया गया; उन्होंने ऐसा नहीं किया और मुद्रा का यह प्रयोग अंततः समाप्त कर दिया गया| तुगलक अपनी राजधानी को दिल्ली से देवगिरी ले गए, इस कदम को सुविधाजनक बनाने के लिए विशेष रूप से एक नए राजमार्ग का निर्माण किया गया| दुर्भाग्य से देवगिरी में एक राजधानी शहर के लिए समर्थक बुनियादी ढांचों का अभाव था, अपर्याप्त जल आपूर्ति के कारण अनेक लोगों की मृत्यु हो जाने के बाद राजधानी को अंततः दिल्ली वापस ले आया गया| |
तुगलक के शासनकाल के दौरान मोरक्को के प्रसिद्ध यात्री और लेखक इब्न बतूता ने उनके दरबार का दौरा किया| हालांकि तुगलक ने स्वयं अपने सिक्कों पर धार्मिक आकृतियां अंकित की थीं लेकिन वे एक सहिष्णु शासक थे जिन्होंने हिंदुओं और जैनियों को दिल्ली में रहने और बसने की अनुमति दी थी| उनके पूर्वजों में उनके समान खुले-दिमाग की भावना अनिवार्य रूप से मौजूद नहीं थी; उनके भतीजे ने उस आदेश को पलट दिया और हिंदुओं तथा जैनियों को दिल्ली से बाहर खदेड़ दिया| थट्टा में सिंधी सूमरो जनजाति के सदस्यों के बीच एक विवाद को दबाने के लिए सिंध की यात्रा के मार्ग में तुगलक की मौत हो गयी| |
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दिल्ली सल्तनत के एक राजा, तुगलक (या तुग़लक़) ने 1325 से 1351 ईस्वी तक शासन किया| वे उन तुर्की सम्राटों और राजाओं की श्रृंखला में से एक थे जिन्होंने उत्तरी भारत पर शासन किया| एक योद्धा और दार्शनिक सम्राट, तुगलक अपने साम्राज्य के लिए एक विस्तारवादी नीति के पक्षधर थे, उन्हें दक्कन तथा गुजरात के विजय अभियानों के लिए जाना जाता है| 1351 ईस्वी के मार्च महीने में उनका निधन हो गया; यह उनका दुर्भाग्य ही था कि उन्होंने अपनी आँखों से अपने साम्राज्य को लड़खड़ाते और उजड़ते हुए देखा| उनके बाद उनके पुत्र, फ़िरोज़ शाह तुग़लक़, ने गद्दी संभाली।
जौना खान, उलूग खान और राजकुमार फख्र मलिक के रूप में भी जाने जानेवाले तुगलक एक सुविख्यात विद्वान और सुलेखक थे| उन्होंने चिकित्सा, खगोल विज्ञान, गणित, दर्शनशास्त्र, तर्कशास्त्र, भौतिक विज्ञान और द्वंद्ववाद का अध्ययन किया था| वे नए प्रयोग करने से कभी हिचकिचाए नहीं और उन्होंने टोकन प्रणाली पर आधारित एक नयी सिक्का प्रणाली की शुरुआत की| तांबे और पीतल के टोकन बनाए गए थे और सल्तनत के खजाने में उनका मूल्य सोने और चांदी द्वारा समर्थित था| नागरिकों को टोकन के बदले अपने सोने और चांदी के सिक्कों का आदान-प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित किया गया; उन्होंने ऐसा नहीं किया और मुद्रा का यह प्रयोग अंततः समाप्त कर दिया गया| तुगलक अपनी राजधानी को दिल्ली से देवगिरी ले गए, इस कदम को सुविधाजनक बनाने के लिए विशेष रूप से एक नए राजमार्ग का निर्माण किया गया| दुर्भाग्य से देवगिरी में एक राजधानी शहर के लिए समर्थक बुनियादी ढांचे का अभाव था, अपर्याप्त जल आपूर्ति के कारण अनेक लोगों की मृत्यु हो जाने के बाद राजधानी को अंततः दिल्ली वापस ले आया गया|
तुगलक के शासनकाल के दौरान मोरक्को के प्रसिद्ध यात्री और लेखक इब्न बतूता ने उनके दरबार का दौरा किया| हालांकि तुगलक ने स्वयं अपने सिक्कों पर धार्मिक आकृतियां अंकित की थीं लेकिन वे एक सहिष्णु शासक थे जिन्होंने हिंदुओं और जैनियों को दिल्ली में रहने और बसने की अनुमति दी थी| उनके पूर्वजों में उनके समान खुले-दिमाग की भावना अनिवार्य रूप से मौजूद नहीं थी; उनके भतीजे ने उस आदेश को पलट दिया और हिंदुओं तथा जैनियों को दिल्ली से बाहर खदेड़ दिया| थट्टा में सिंधी सूमरो जनजाति के सदस्यों के बीच एक विवाद को दबाने के लिए सिंध की यात्रा के मार्ग में तुगलक की मौत हो गयी|